कहानी - राजा विक्रमादित्य अपने न्याय के लिए बहुत प्रसिद्ध हैं। उनके नाम से ही विक्रम संवत् चल रहा है। विक्रमादित्य से जुड़ी एक घटना है, जिसमें उन्होंने बताया है कि न्याय व्यवस्था कैसी होनी चाहिए।
एक दिन विक्रमादित्य शिकार के लिए जंगल की ओर जा रहे थे। राजा के सैनिक पीछ रह गए थे और वे रास्ता भटक गए थे। अपने राज्य का रास्ता खोजते समय उनका घोड़ा एक खेत में घुस गया। घोड़े की वजह से फसल खराब हो गई। खेत का मालिक किसान वहीं खड़ा ये सब देख रहा था। वह जोर से चिल्लाया कि मेरी फसल खराब हो गई है।
राजा को लगा कि किसान ने देख लिया है, उसका नुकसान हो गया है। वे घोड़े से उतरे और किसान के पास पहुंचे।
किसान बोला, 'घुड़सवार तुम बहुत लापरवाह हो, तुमने अपराध किया है। तुमने मेरी फसल खराब कर दी है। इसके लिए तुम्हें सजा मिलनी चाहिए। मैं मेरे राजा विक्रमादित्य से इसकी शिकायत करूंगा। वे न्याय प्रिय हैं, वे तुम्हें अवश्य दंड देंगे।'
विक्रमादित्य समझ गए कि ये किसान मुझे नहीं जानता है, लेकिन मेरी न्याय व्यवस्था पर इसे भरोसा है। मुझे इसके विश्वास की रक्षा करनी होगी।
राजा ने उसी समय अपने घोड़े पर लगा कोड़ा निकला और किसान से कहा, 'अभी आप मुझे पांच कोड़े मार लो।'
किसान बोला, 'ये काम मेरा नहीं है।'
इसके बाद विक्रमादित्य ने खुद अपने हाथों से अपनी पीठ पर पांच कोड़े मार लिए और वहां से चले गए।
अगले दिन वह किसान विक्रमादित्य के दरबार में पहुंचा। उसे घुड़सवार की शिकायत करनी थी। उसने जैसे ही राजा को देखा तो वह शर्मिंदा हो गया, क्योंकि वह घुड़सवार ही राजा विक्रमादित्य थे। राजा ने किसान के सामने जो कोड़े मारे थे, उनका दर्द भी उन्हें हो रहा था।
विक्रमादित्य ने किसान से कहा, 'हमें आप पर गर्व है कि हमारे राज्य में आपके जैसी प्रजा है, जो मुझे ये शिक्षा दे रही है कि कानून का पालन कराने वाले को पहले खुद कानून का पालन करना चाहिए।'
सीख- आज राजा और प्रजा की व्यवस्था नहीं है, लेकिन शासन-प्रशासन के बड़े अधिकारियों, मंत्रियों को खुद सभी नियमों का पालन करके नजीर पेश करनी चाहिए, तभी जनता भी सभी नियमों का पालन करने के लिए प्रेरित होगी।
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2Wh0K7q
No comments:
Post a Comment